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7. कुंडलिनी योग : चक्रों की देवियाँ और देवता

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प्रत्येक चक्र में एक पुरुष वर्ग की उष्णवीर्य (धनात्मक) और एक स्त्री वर्ग की शीतवीर्य (ऋणात्मक) शक्ति रहती है। इन शक्तियों को ही चक्रों के देवी-देवता की संज्ञा दी गयी है। उत्पादन, पोषण, पाचन आदि का बल उष्णवीर्य शक्ति कहलाता है तथा स्थूल शरीर का धारण करने वाली सप्तधातुओं को शीतवीर्य शक्ति कहा जाता है। आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार शरीर का निर्माण करने वाले तत्त्वों में सप्‍त धातुओं का विशेष महत्‍व है। सप्तधातुओं से स्थूल शरीर का धारण होता है अर्थात यह शरीर के निर्माण व संरचना में सहायक होती हैं इसी कारण से इन्हें ‘धातु’ कहा जाता है। आयुर्वेद में सात प्रकार की धातुओं के बारे में बताया गया है तथा इन्हें एक निश्चित क्रम में रखा गया है। हमारे स्थूल शरीर के अवयवों की संरचना इन्हीं सात धातुओं से मिलकर हुई है। चूँकि इन सातों धातुओं का निर्माण पंच स्थूलभूतों से मिलकर होता है अतः हर एक धातु में किसी एक स्थूलभूत तत्त्व की अधिकता होती है। ‘सुश्रुत संहिता’ के अनुसार मनुष्य जो पदार्थ खाता है उससे पहले द्रव स्वरूप एक सूक्ष्म सार बनता है, जो रस कहलाता है। यही रस पहले रक्त का रूप धारण करता है तत्पश्चात उससे क्रमशः मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र धातु बनती है। ‘सौभाग्यरत्नाकर’ में सात शक्तियों का निवास सात धातुओं में बतलाया गया है अर्थात सात धातुओं को सात देवियों की संज्ञा दी गयी है। शुक्र धातु को डाकिनी, रस व रक्त धातु को राकिनी, मांस धातु को लाकिनी, मेद धातु को काकिनी, अस्थि धातु को शाकिनी तथा मज्जा धातु को हाकिनी देवी की संज्ञा दी गयी है। इन देवियों के अतिरिक्त शिशु ब्रह्मा को उत्पादन, विष्णु को पोषण, रुद्र को पाचन, हंस ईश को संहार, पंचमुखी शिव को आहरण तथा ज्योतिर्लिंग को ज्ञान बल का प्रतीक माना गया है। ब्रह्मनाड़ी में अवस्थित चक्रों में देवी-देवताओं को शीतवीर्य और उष्णवीर्य शक्ति के प्रतीक के रूप में दर्शाया गया है। मूलाधार चक्र की देवी डाकिनी व देवता शिशु ब्रह्मा हैं, स्वाधिष्ठान चक्र की देवी राकिनी व देवता विष्णु हैं, मणिपुर चक्र की देवी लाकिनी व देवता रुद्र हैं, अनाहत चक्र की देवी काकिनी व देवता हंस-ईश हैं, विशुद्धि चक्र की देवी शाकिनी व देवता पंचमुखी शिव हैं तथा आज्ञा चक्र की देवी हाकिनी व देवता ज्योतिर्लिंग हैं।
 
                                                                     ~ आचार्यश्री