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5. कुंडलिनी योग : चक्रों के तत्त्व और वर्ण

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स्थूल शरीर पंचभूतों से मिलकर बना है जिन्हें, आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी तत्त्व के नाम से जाना जाता है। इन पंचतत्त्वों के असंतुलन से शरीर में त्रिदोष उत्पन्न हो जाते हैं; त्रिदोष का तात्पर्य है वात, पित्त व कफ से उत्पन्न होने वाले रोग। चरक संहिता के अनुसार मानव शरीर में वात दोष से अस्सी, पित्त दोष से चालीस तथा कफ दोष से बीस प्रकार के रोग होते हैं। आकाश व वायु तत्त्व के असंतुलन से वात रोग होते हैं, अग्नि तत्त्व के असंतुलन से पित्त रोग होते हैं और जल व पृथ्वी तत्त्व के असंतुलन से कफ रोग होते हैं। स्थूल शरीर के पंचतत्त्वों का ब्रह्मनाड़ी में अवस्थित सूक्ष्म चक्रों से घनिष्ठ सम्बंध रहता है। पृथ्वी तत्त्व का सम्बंध मूलाधार चक्र से है, जल तत्त्व का सम्बंध स्वाधिष्ठान चक्र से है, अग्नि तत्त्व का सम्बंध मणिपुर चक्र से है, वायु तत्त्व का सम्बंध अनाहत चक्र से है तथा आकाश तत्त्व का सम्बंध विशुद्धि चक्र से है। पृथ्वी, जल, अग्नि आदि पाँचों तत्त्वों का अपना-अपना निश्चित वर्ण होता है तथा इन तत्त्वों का वर्ण ही चक्रों का वर्ण कहलाता है। सामान्यतः प्रत्येक चक्र में विविध वर्ण होते हैं परन्तु मुख्यतः तत्त्व का वर्ण ही चक्र का वर्ण माना जाता है। पंचतत्त्वों के वर्णों का वर्णन करते हुए भगवान शिव देवी पार्वती से कहते हैं-
“आपः श्वेताः क्षितिः पीता रक्तवर्णो हुताशनः।
मारुतो नीलजीमूत आकाशः सर्ववर्णकः।।”
अर्थात “जल श्वेत, पृथ्वी पीला, अग्नि लाल, वायु नीला तथा आकाश सर्व वर्ण (धूम्र वर्ण) जैसा होता है।” (शिव-स्वरोदय : १५५)
चूँकि मूलाधार चक्र का तत्त्व पृथ्वी है अतः इस चक्र का वर्ण पीला है, स्वाधिष्ठान चक्र का तत्त्व जल है अतः इसका वर्ण श्वेत है, मणिपुर चक्र का तत्त्व अग्नि है अतः इसका वर्ण लाल है, अनाहत चक्र का तत्त्व वायु है अतः इसका वर्ण नीला है तथा विशुद्धि चक्र का तत्त्व आकाश है इसलिए इसका वर्ण धूम्र है।
                                                                     ~ आचार्यश्री