जिस प्रकार बांसुरी में वायु का प्रवेश होने पर छिद्रों के आघात से सा, रे, ग, म जैसे स्वरों की ध्वनि उत्पन्न होती है। उसी प्रकार जब प्राणवायु ब्रह्मनाड़ी नाड़ी में से अभिगमन करता है तो चक्रों के सूक्ष्म छिद्रों के आघात से लँ, वँ, रँ, यँ जैसे स्वरों की ध्वनि उत्पन्न होती है। इन विशेष ध्वनियों को ही चक्रों का मंत्र अथवा तत्त्वबीज कहते हैं। जब प्राणवायु ब्रह्मनाड़ी के माध्यम से मूलाधार चक्र में अभिगमन करता है तो इस चक्र के सूक्ष्म छिद्रों के आघात से “लँ” की ध्वनि उत्पन्न होती है, इस ध्वनि को ही मूलाधार चक्र का मंत्र अथवा तत्त्वबीज कहते हैं। इसी प्रकार स्वाधिष्ठान चक्र में “वँ” ध्वनि उत्पन्न होती है, मणिपुर चक्र में “रँ” ध्वनि उत्पन्न होती है, अनाहत चक्र में “यँ” ध्वनि उत्पन्न होती है, विशुद्धि चक्र में “हँ” ध्वनि उत्पन्न होती है तथा आज्ञा चक्र में “ॐ” की ध्वनि उत्पन्न होती है। प्राणवायु चक्रों में जिन मार्गों से अभिगमन करता है वे मार्ग टेढ़े-मेढ़े होते हैं इस कारण से जब प्राणवायु चक्रों में अभिगमन करता है तो उसकी चाल सभी चक्रों में एक जैसी न होकर भिन्न-भिन्न होती है। यह चाल किसी चक्र में मेष के समान फुदकने वाली, किसी में मगर के समान डुबकी मारने वाली तथा किसी में हिरण की तरह छलांग मारने वाली होती है। चक्रों की यह चाल ही चक्रों का वाहन कहलाती है। मूलाधार चक्र का वाहन ऐरावत हाथी है जिसका तात्पर्य यह है कि इस चक्र में प्राणवायु की चाल ऐरावत हाथी की तरह शीघ्रगामी है। स्वाधिष्ठान चक्र में प्राणवायु की चाल मगर के समान डुबकी मारने वाली होती है इसलिए इस चक्र का वाहन मगर कहलाता है। मणिपुर चक्र में प्राणवायु की चाल मेष की तरह फुदकने वाली होती है अतः इस चक्र का वाहन मेष है। अनाहत चक्र में प्राणवायु की चाल हिरण की तरह छलांग मारने वाली होती है अतः इस चक्र का वाहन हिरण कहा जाता है। विशुद्धि चक्र में प्राणवायु की चाल हाथी की तरह मंदगामी रहती है इसीलिए इस चक्र का वाहन हाथी है।
~ आचार्यश्री