प्राण की उत्पत्ति आत्मा से होती है अर्थात आत्मा चेतनतत्व है और प्राण उसकी चेतनाशक्ति है; चेतना चेतन से उत्पन्न होती है इसीलिए प्राण को आत्मा से उत्पन्न हुआ कहा जाता है। जिस प्रकार सूर्य से प्रकाश उत्पन्न होता है, मनुष्य-शरीर से छाया उत्पन्न होती है उसी प्रकार आत्मा से प्राण उत्पन्न होता है।प्राणशक्ति (प्राणवायु) अनेक नहीं हैं अपितु एक ही है परंतु प्राणी शरीर में इसकी क्रियाशीलता के आधार पर इसे कई भागों में विभक्त किया गया है। मानव शरीर में प्राणवायु को दस भागों में विभक्त माना गया है, जिसमें पाँच को प्राण तथा पाँच को उपप्राण कहते हैं। प्राण, अपान, समान, उदान एवं व्यान को पाँच प्राण कहते हैं; ये पाँच प्राण पाँच विशिष्ट रूपों में अभिव्यक्त होकर पाँच उपप्राण कहलाते हैं जो कि नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त एवं धनञ्जय के नाम से जाने जाते हैं। प्राण का उपप्राण नाग है, अपान का उपप्राण कूर्म है, समान का उपप्राण कृकल है, उदान का उपप्राण देवदत्त है तथा व्यान का उपप्राण धनञ्जय है। यह प्राणरूपी चेतना शरीर में करोड़ों सूक्ष्म नाड़ियों के माध्यम से प्रवाहित होती है। मानव शरीर में प्राण श्वसन तंत्र को चलाता है; इसके द्वारा प्राणी श्वास को अंदर की ओर खींचता है तथा यह वक्षीय क्षेत्र को गतिशीलता प्रदान करता है। अपान उत्सर्जन तंत्र को चलाता है; यह शरीर के अंदर पैदा होने वाले मल, मूत्र, पसीना आदि त्याज्य पदार्थों को भिन्न-भिन्न छिद्रों द्वारा शरीर से बाहर निकालता रहता है। समान पाचन तंत्र को चलाता है; यह खाए हुए अन्न को पचाने तथा पचे हुए अन्न से रस, रक्त आदि धातुओं को बनाने का कार्य करता है। उदान कैरोटिड धमनी का संचालन करता है तथा इसी के द्वारा प्राणी बोलने में समर्थ होता है। व्यान सम्पूर्ण शरीर में व्याप्त रहते हुए परिसंचरण तंत्र को चलाता है, यह शरीर की कोशिकाओं के बीच पोषक तत्वों का यातायात करता है, इससे रोगों से शरीर की रक्षा होती है, शरीर का ताप स्थिर बना रहता है तथा इसके द्वारा शरीर में रक्त के संवहन का कार्य किया जाता है। नाग नामक उपप्राण के द्वारा शरीर डकार,हिचकी आदि क्रियाएँ करता है। कूर्म उपप्राण के द्वारा आँखों को खोलने और बंद करने अथवा पलक झपकाने आदि की क्रिया होती है। कृकल शरीर में भूख-प्यास आदि उत्पन्न करता है। देवदत्त शरीर में जम्हाई, अँगड़ाई आदि क्रियाओं को करता है तथा धनञ्जय शरीर की मांसपेशियों को सुडौल बनाकर रखता है। सूक्ष्म शरीर में स्थित चक्रों का प्राणमय कोश की प्राणवायु से घनिष्ठ संबंध रहता है, जिस चक्र का जिस प्राणवायु से संबंध होता है वह ही उस चक्र की प्राणवायु कहलाती है। जैसे कि मूलाधार चक्र की प्राणवायु अपान है, स्वाधिष्ठान चक्र की प्राणवायु व्यान है, मणिपुर चक्र की प्राणवायु समान है, अनाहत चक्र की प्राणवायु प्राण है तथा विशुद्धि चक्र की प्राणवायु उदान है।
~ आचार्यश्री