कुंडलिनी योग किसी व्यक्ति विशेष के लिए नहीं बल्कि समस्त जनसाधारण के लिए है। यह कोई ऐसी रहस्यमयी विद्या नहीं जिसे साधारणजन सीख या समझ न सके। वस्तुतः कुंडलिनी योग एक अतीन्द्रिय शरीर विज्ञान है जो कि अत्यंत ही सहज विद्या है परंतु कुछ तथाकथित योगियों ने इसे अत्यंत जटिल और रहस्यमयी बना दिया है जिसके परिणामस्वरूप साधारणजन इसे सीख नहीं पाते और इसके लाभों से वंचित रह जाते हैं। कुंडलिनी योग का वर्णन मुख्यतः हठयोग के ग्रंथों एवं तंत्र शास्त्रों में पाया जाता है परंतु वर्तमान में जो तंत्र शास्त्र उपलब्ध हैं वे पूर्णतः प्रामाणिक नहीं हैं, कालान्तर में कुछ विद्याविरोधयों द्वारा इन शास्त्रों में बहुत अधिक मिलावट की गयी है अतः साधकों को इन शास्त्रों का अध्ययन किसी अनुभवी आचार्य के सानिध्य में ही करना चाहिए। अस्तु, अब हम जानते हैं कुंडलिनी योग के उन विषयों को जो सामान्यतः लोगों को समझ नहीं आते। कुंडलिनी योग में सर्वप्रथम चक्रों के विषय में जानना आवश्यक है, ये चक्र क्या हैं? कितने हैं? और शरीर में कहाँ-कहाँ हैं? चक्रों की संख्या के विषय में अधिकतर मनुष्य भ्रमित रहते हैं और इस भ्रम का कारण है तथाकथित योगियों द्वारा चक्रों की भिन्न-भिन्न संख्या बताना। यथार्थतः शरीर में कितने चक्र हैं, यह जानने के लिए वेदों का अध्ययन आवश्यक है क्योंकि वेद मानव इतिहास के सबसे प्राचीन व प्रामाणिक ग्रन्थ हैं। अथर्ववेद के एक मंत्र में चक्रों की संख्या इस प्रकार बताई गई है-
अष्टाचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या।
तस्यां हिरण्यय: कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः।।
(अथर्ववेद : 10/2/31)
मंत्रार्थ- “आठ चक्र वाली और नौ द्वार वाली देवताओं ( इन्द्रियों) की अयोध्या पुरी है, उसमें हिरण्मय स्वर्गप्रद कोश ज्योति से आवृत्त है।”
अथर्ववेद के उपरोक्त मंत्र में जिन आठ चक्रों का उल्लेख किया गया है वे इस प्रकार हैं- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्धि, ललना, आज्ञा और सहस्त्रार। सुषुम्ना के अंतर्गत रहने वाली तीन नाड़ियों में सबसे भीतर स्थित ब्रह्मनाड़ी से ये आठ चक्र संबंधित हैं। सुषुम्ना एवं उसके अंतर्गत रहने वाली चित्रणी आदि नाड़ियाँ तथा आठों चक्र इतने सूक्ष्म हैं कि उन्हें साधारण नेत्रों से देखना सम्भव नहीं। किसी शरीर की चीर-फाड़ करते समय इन चक्रों को शरीर के अन्य अवयवों की तरह स्पष्ट रूप से नहीं देखा जा सकता क्योंकि मनुष्यों के चर्मचक्षुओं की वीक्षण शक्ति बहुत ही सीमित होती है। मानव शरीर में यह चक्र चैतन्य ऊर्जा केन्द्र हैं, इन चक्रों को योगियों ने अपनी योगदृष्टि से देखा है और उनका वैज्ञानिक परीक्षण करके महत्वपूर्ण लाभ उठाया है तथा उनके व्यवस्थित विज्ञान का निर्माण करके योगमार्ग के पथिकों के लिए उसे उपस्थित किया है। योगियों के अनुसार जिस सुषुम्ना नाड़ी में यह आठों चक्र स्थित हैं वह सुषुम्ना नाड़ी स्थूल शरीर में मेरुदण्ड के अंतर्गत आती है। मानव शरीर में मेरुदंड के निचले छोर पर मूलाधार चक्र अवस्थित है, उससे लगभग दो अंगुल ऊपर स्वाधिष्ठान चक्र है, नाभि के ठीक पीछे मेरुदंड में मणिपुर चक्र स्थित है, वक्ष के केंद्र के पीछे मेरुदंड में अनाहत चक्र का स्थान है, गर्दन के पिछले भाग में कण्ठ-कूप के पीछे विशुद्धि चक्र है, विशुद्धि चक्र से थोड़ा ऊपर जिव्हा मूल (तालु) में ललना चक्र स्थित है, मध्य मस्तिष्क में भ्रूमध्य के पीछे मेरुदंड के शीर्ष पर आज्ञा चक्र है तथा सिर के शीर्ष भाग में सहस्त्रार चक्र अवस्थित है। योगशास्त्र में जिन चैतन्य ऊर्जा केंद्रों को चक्र या पद्म के नाम से सम्बोधित किया गया है, आधुनिक शरीरशास्त्रियों एवं चिकित्सा विशेषज्ञों ने उन ऊर्जा केंद्रों को विशेष प्रकार के जैव विद्युत चुम्बकीय क्षेत्र (बायोइलेक्ट्रोमैग्नेटिक फील्ड) माना है। वस्तुतः यह चक्र सूक्ष्म ग्रन्थियों की तरह होते हैं परन्तु ये ग्रंथियाँ गोल नहीं होतीं वरन इनमें इस प्रकार कोण निकले होते हैं जैसे पुष्प में पंखुड़ियाँ होती हैं; इन कोण रूपी पंखुड़ियों को पद्मदल कहते हैं।
~ आचार्यश्री