यदि आप व्यावसायिक, सामाजिक अथवा पारिवारिक कार्यों के कारण तनावग्रस्त हो जाते हैं तो तनाव से मुक्ति के लिए आपको प्रतिदिन तीस मिनट ‘चंद्रस्वर ध्यान’ अवश्य करना चाहिए। तनाव मनःस्थिति से उपजा विकार है, मनःस्थिति एवं परिस्थिति के बीच असंतुलन व असामंजस्य के कारण तनाव उत्पन्न होता है। तनाव एक द्वन्द है जो मन एवं भावनाओं में गहरी दरार पैदा करता है, तनाव अन्य अनेक मनोविकारों का प्रवेश द्वार है; तनाव से मन अशान्त, भावना अस्थिर एवं शरीर में अस्वस्थता का अनुभव होता है; तनाव के कारण माइग्रेन, अनिद्रा, उच्चरक्तचाप तथा हृदय रोग आदि भी उत्पन्न हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में आपकी कार्यक्षमता प्रभावित होती है और आपकी शारीरिक व मानसिक विकास यात्रा में व्यवधान आता है। तनाव कई कारणों से हो सकता है जैसे कि अधिक काम का दबाव, बीमारी, अपर्याप्त भोजन, सोने की गलत आदतें, भावनात्मक दबाव, शोर के प्रति अतिसंवेदनशीलता, विभिन्न प्रकार के भय अथवा कभी-कभी जल्दी कुछ प्राप्त करने की कामना का दबाव भी तनाव का कारण बन जाता है। जब आप किसी कारण से तनाव की स्थिति में होते हैं तो उस समय आपकी श्वसन प्रक्रिया सूर्य स्वर के माध्यम से होने लगती है। अतः ऐसी स्थिति में यदि आप अपनी श्वसन प्रक्रिया को परिवर्तित कर लें अर्थात श्वसन प्रक्रिया चन्द्र स्वर के माध्यम से कर लें तो तनाव स्वतः समाप्त हो जाता है। शरीर में लगभग बहत्तर करोड़ बहत्तर लाख सूक्ष्म नाड़ियाँ होती हैं जिनमें इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना नामक तीन नाड़ियाँ प्रमुख मानी जाती हैं। इड़ा को चन्द्र स्वर, पिंगला को सूर्य स्वर तथा सुषुम्ना को मध्य स्वर कहते हैं। ‘चंद्रस्वर ध्यान’ एक ऐसी प्राचीन यौगिक तकनीकी है जिसके द्वारा आप किसी भी प्रकार के तनाव की स्थिति में बड़ी ही सहजता से अपनी श्वसन प्रक्रिया को सूर्य स्वर से चन्द्र स्वर में परिवर्तित कर तनाव से मुक्त हो जाते हैं। ‘चंद्रस्वर ध्यान’ तनाव से मुक्ति पाने की सर्वश्रेष्ठ विधि है, इस ध्यान विधि से आप अपने विचलित मन को एक गहरा विश्राम दे पाते हैं। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार तनाव मानव शरीर की सभी प्रणालियों पर गहरा प्रभाव डालता है। जब आप तनाव में होते हैं तो आपका शरीर कोर्टिसोल नामक हार्मोन जारी करके प्रतिक्रिया देता है, इसे स्ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं। कोर्टिसोल शरीर में एड्रिनल ग्रंथियों द्वारा बनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण हार्मोन है। मस्तिष्क के अंदर स्थित पिट्यूटरी ग्रंथि द्वारा एड्रिनल ग्रंथियों से जारी होने वाले कोर्टिसोल हार्मोन की मात्रा नियंत्रित की जाती है। शरीर में यदि कार्टिसोल की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाए तो वह हानिकारक होती है तथा शरीर में इसकी मात्रा यदि आवश्यकता से कम हो जाए तो भी वह हानिकारक होती है। ‘चंद्रस्वर ध्यान’ का नियमित अभ्यास करने से पिट्यूटरी ग्रंथि पर पड़ने वाला प्रभाव एड्रिनल ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन की मात्रा को नियंत्रित रखता है; जिसके परिणामस्वरूप आप तनाव से मुक्त रहते हैं, आपका मन शांत रहता है तथा आपके आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
~ आचार्यश्री