“ब्रह्मतेज ध्यान” एक प्राचीन वैदिक ध्यान पद्धति है जो कि किशोरावस्था के समस्त बालक-बालिकाओं के लिए विशेष लाभकारी है। इस ध्यान विधि का प्रतिदिन अभ्यास करने से किशोरों में ब्रह्मतेज की वृद्धि होती है जिससे उनकी बुद्धि कुशाग्र हो जाती है, स्मरण शक्ति बढ़ जाती है, मन शांत रहता है, विचारों में सकारात्मकता आती है तथा इच्छाशक्ति दृढ़ होती है। ब्रह्मतेज (ज्ञानबल) को प्राचीनकाल से ही श्रेष्ठ बल माना गया है, ब्रह्मतेज की महिमा को बताते हुए विश्वामित्र कहते हैं-
“ब्रह्मतेजोबलं बलम्” अर्थात ब्रह्मतेज से प्राप्त होने वाला बल ही वास्तव में बल है। (रामायण, बालकाण्ड, ५६:२३)
किशोरावस्था में ब्रह्मतेज ध्यान विधि का प्रतिदिन केवल बीस मिनट अभ्यास करने से विद्यार्थियों को निम्न लाभ होते हैं-
मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर प्रभाव : संरचनात्मक रूप से मस्तिष्क के तीन मुख्य भाग होते हैं- अग्र मस्तिष्क, मध्य मस्तिष्क एवं पश्च मस्तिष्क। प्रमस्तिष्क एवं डाइएनसीफेलॉन अग्र मस्तिष्क के भाग होते हैं; मेडुला, पोन्स एवं अनुमस्तिष्क पश्च मस्तिष्क के भाग होते हैं। प्रमस्तिष्क बुद्धि का केन्द्र होता है तथा यह पूरे मस्तिष्क का सबसे बड़ा भाग होता है। यह बुद्धि, स्मृति एवं इच्छाशक्ति का केन्द्र है। यह हमें हिसाब लगाने, सोचने-समझने, भविष्य नियोजन तथा नई-नई खोजों व नए अविष्कारों की क्षमता प्रदान करता है। यह मनुष्य की भावनाओं एवं वाणी पर भी नियंत्रण करता है। ब्रह्मतेज ध्यान का अभ्यास करने से सेरीब्रम की कार्यप्रणाली पर जो प्रभाव होते हैं उसके परिणामस्वरूप विद्यार्थियों की बुद्धि, स्मृति व इच्छाशक्ति में वृद्धि होती है एवं भावनाओं पर नियंत्रण होता है।
स्मरण शक्ति में वृद्धि : अधिकतर विद्यार्थी जो भी याद करते हैं परीक्षा के समय कमजोर स्मरण शक्ति होने के कारण उसे भूल जाते हैं क्योंकि तनाव की वजह से मस्तिष्क में हिप्पोकैम्पस पर जो प्रभाव पड़ता है उससे स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है। हिप्पोकैम्पस मस्तिष्क में लिम्बिक प्रणाली का एक भाग है, इसमें समस्त प्रकार की स्मृतियाँ संग्रहित रहती हैं। ब्रह्मतेज ध्यान के नियमित अभ्यास से हिप्पोकैम्पस सामान्य रहता है जिससे विद्यार्थियों की स्मरण शक्ति में वृध्दि होती है तथा वे हाजिरजवाबी हो जाते हैं। स्मरण शक्ति में वृध्दि होने से विद्यार्थी जो भी पढ़ते या सीखते हैं वह परीक्षा के समय भी उन्हें याद रहता है।
कुशाग्र बुद्धि : जिन विद्यार्थियों की बुद्धि कुशाग्र नहीं होती उन्हें किसी भी विषय को सीखने या समझने में कठिनाई होती है। नियमित रूप से ब्रह्मतेज ध्यान करते रहने से विद्यार्थियों की बुद्धि कुशाग्र हो जाती है जिससे वे किसी भी विषय को बड़ी ही सरलता से सीख जाते हैं। कुशाग्र बुद्धि वाले विद्यार्थी इतने सक्षम हो जाते हैं कि वे अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एकाग्रचित होकर कार्य करने लगते हैं तथा वह अपनी कुशाग्र बुद्धि के बल पर मार्ग में आने वाली सभी बाधाओं को भी आसानी से पार कर लेते हैं।
एकाग्रचित्त : अक्सर विद्यार्थियों को स्कूल या कॉलेज में जब किसी विषय के बारे में विस्तार से बताया जाता है तो वह कुछ समय तो एकाग्र रहते हैं, लेकिन धीरे-धीरे उनका ध्यान पढाये जा रहे विषय से हटकर कहीं और चला जाता है जिससे वह जरूरी बातों पर ध्यान नहीं दे पाते लेकिन ब्रह्मतेज ध्यान करने वाला विद्यार्थी हर समय एकाग्रचित्त रहता है तथा वह हर बारीक से बारीक चीजों पर भी ध्यान रखता है।
निर्णय लेने की क्षमता : किशोरावस्था जीवन का वह काल है जहाँ से किसी अपरिपक्व व्यक्ति का मानसिक विकास चरम सीमा की ओर बढ़ता है; व्यक्ति भविष्य में जो कुछ होता है, उसकी पूरी रूपरेखा किशोरावस्था में बन जाती है। इस काल में भावों के विकास के साथ-साथ व्यक्ति की कल्पना का भी विकास होता है, किशोरावस्था में विद्यार्थी अक्सर अपने भविष्य के निर्णयों को लेकर असमंजस की स्थिति में रहते हैं। ब्रह्मतेज ध्यान के नियमित अभ्यास से मस्तिष्क में स्थित प्रीफ्रंटल कॉर्टेक्स पर एक विशेष प्रभाव पड़ता है जो विद्यार्थियों को मानसिक रूप से सशक्त बनाता है जिससे वह अपने भविष्य से जुड़े महत्वपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम हो जाते हैं।
सकारात्मक स्वभाव : जीवन में आगे बढ़ने और सफलता हासिल करने के लिए आपके स्वभाव का अच्छा और सकारात्मक रहना जरूरी है। इस काम में यह ध्यान विधि आपकी मदद करती है। जब आप इस ध्यान विधि का अभ्यास करते हैं, तो आप अंदर से पूरी तरह सकारात्मक ऊर्जा से भर जाते हैं। इससे आपका स्वभाव अच्छा होता तथा जीवन को लेकर विचार सकारात्मक होते हैं। इस ध्यान विधि के प्रतिदिन अभ्यास से आप जीवन के हर दिन को नई ऊर्जा व उत्साह के साथ जीते हैं तथा दिनभर अध्ययन में मन लगा रहता है।
चिंता से मुक्ति : हर विद्यार्थी यही चाहता है कि परीक्षा में वह अधिक से अधिक अंक प्राप्त करे। अधिक अंक प्राप्त करने की इच्छा कई बार विद्यार्थियों में चिंता का रूप ले लेती है तथा परीक्षा में कम अंक आने का भय उनमें नकारात्मक भाव उत्पन्न कर देता है। ब्रह्मतेज ध्यान का अभ्यास सोच को सकारात्मक बनाता है जिससे नकारात्मक भाव उत्पन्न नहीं होते तथा विद्यार्थी चिंतामुक्त जीवन जीता है।
तनाव से मुक्ति : आज के प्रतियोगिता से भरे जीवन में किशोरावस्था से ही बच्चे तनावग्रस्त होने लगते हैं। तनाव हर किसी के लिए नुकसानदायक है। अधिक तनाव बढ़ने से बच्चे अवसादग्रस्त हो जाते हैं जिससे उनके अध्ययन में बाधा आती है। ब्रह्मतेज ध्यान विधि का अभ्यास करने से उत्साह व आनन्द बढ़ता है जिससे स्वाभाविक रूप से तनाव कम हो जाता है।
दबाव से मुक्ति : कई बार पढ़ाई का कार्य इतना ज्यादा हो जाता है कि विद्यार्थी अक्सर मानसिक दबाव में आ जाते हैं। इस अवस्था में उनके लिए मानसिक संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो जाता है। इससे बचने का सबसे सहज व उत्तम उपाय ब्रह्मतेज ध्यान है। इस ध्यान विधि के नियमित अभ्यास से विद्यार्थियों को हर तरह की स्थिति और दबाव से बाहर निकलने की शक्ति मिलती है।
उपरोक्त मानसिक लाभों के अतिरिक्त इस ध्यान विधि के नियमित अभ्यास से कई प्रकार के शारीरिक लाभ भी होते हैं। इसके अभ्यास से जल एवं अग्नि तत्त्व संतुलित रहते हैं जिससे शरीर में कफ एवं पित्त रोग उत्पन्न नहीं होते। इसके अभ्यास से शरीर से विषाक्त पदार्थ निष्कासित हो जाते हैं, फेफड़े स्वच्छ होते हैं, श्वसन तंत्र स्वस्थ रहता है, शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है, रक्त परिसंचरण ठीक रहता है तथा शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। यह ध्यान विधि तंत्रिका तंत्र में संतुलन लाती है और उसे मजबूत बनाती है, साथ ही पाचन तंत्र के अंगों को पुष्ट बनाती है जिससे शरीर में पाचन सम्बन्धी रोग उत्पन्न नहीं होते।
~ आचार्यश्री