आचार्यश्री : घंटियां मुख्यरूप से चार प्रकार की होती हैं- 1. गरूड़ घंटी, 2. द्वार घंटी, 3. हाथ घंटी और 4. घंटा।
गरूड़ घंटी छोटी-सी होती है जिसे एक हाथ से बजाया जा सकता है।
द्वार घंटी द्वार पर लटकी होती है। यह बड़ी और छोटी दोनों ही आकार की होती है।
हाथ घंटी पीतल की ठोस गोल प्लेट की तरह होती है जिसको लकड़ी के एक गद्दे से ठोककर बजाते हैं।
घण्टा बहुत बड़ा होता है। कम से कम 5 फुट लंबा और चौड़ा। इसको बजाने के बाद आवाज काफी दूर तक चली जाती है।
ये चारों प्रकार की घंटियां कैडमियम, जिंक, निकल, क्रोमियम और मैग्नीसियम से बनाई जाती हैं। कैडियम, जिंक तथा निकेल आदि धातुओं से बनी घंटी बजाने पर जो ध्वनि निकलती है, वो मस्तिष्क के दाएं और बाएं गोलार्द्ध को संतुलित करती है। तथा सुषुम्ना नाड़ी में स्थित सभी सूक्ष्म चक्रों को सक्रिय कर देती है। घंटी की तेज आवाज जब वातावरण में गूंजती है तो उससे जो कंपन पैदा होता है, वह हमारे आसपास के वातावरण में काफी दूर तक जाता है जिससे कई प्रकार के हानिकारक सूक्ष्मजीव नष्ट हो जाते हैं और हमारे आसपास का वातावरण भी शुद्ध हो जाता है। घंटी बजाने से इसकी ध्वनि तरंगें वातावरण को प्रभावित करती हैं जिससे वातावरण शांत, पवित्र और सुखद बनता है। घंटी बजाने से सकारात्मक शक्तियों का प्रसार होता है तथा नकारात्मक ऊर्जा का निष्कासन होता है। घंटी की मनमोहक एवं कर्णप्रिय ध्वनि मन-मस्तिष्क को अध्यात्म भाव की ओर ले जाने का सामर्थ्य रखती है। तथा मन घंटी की लय से जुड़कर शांति का अनुभव करता है। इसीलिए मंदिरों के बाहर घंटी लगाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। जब भी कोई मंदिर में प्रवेश करता है तो वह पहले वहां पर लगी घंटियों को जरूर बजाता है। घर में भी पूजा करते समय लोग घंटी अवश्य बजाते हैं।