इष्टदेव ध्यान केवल कुछ मिनटों का ही ध्यान नहीं बल्कि वैदिक जीवन पद्धति के अन्तर्गत आने वाली एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है। यह वर्तमान में प्रचलित पाश्चात्य मनोचिकित्सा से भिन्न आस्तिक विचारधारा पर आधारित एक प्राचीन भारतीय मनोचिकित्सा है। अवसाद एक सामान्य मनोरोग है जिसके कुछ निश्चित लक्षण होते हैं जो व्यक्ति के विचारों, भावनाओं, व्यवहार, संबंध, कार्य प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं और अत्यंत गंभीर मामलों में मृत्यु तक भी हो सकती है। किसी बुरी घटना या परिस्थिति पर उदास होना स्वाभाविक है परंतु यदि ये भावना लंबे समय तक बनी रहे या बार बार आती रहे और सामान्य जीवन व स्वास्थ्य को बाधित करे तो ये चिकित्सा परिभाषा में अवसाद की श्रेणी में आ जाता है, जिसका उपचार करना अनिवार्य होता है। अवसाद जीवन के किसी भी पड़ाव में कभी भी किसी को भी अपनी चपेट में ले सकता है तथा यह जीवन के हर पहलू को प्रभावित कर सकता है। अवसादग्रस्त व्यक्ति में निम्न लक्षण पाये जाते हैं –
हमेशा उदास व चिंतित महसूस करना, मन में निराशावादी विचारों का संचार, स्वयं को दोषी व असहाय महसूस करना, मनपसंद कार्यों को भी करने में मन न लगना, एकाग्रता में कमी व निर्णय लेने में परेशानी, बहुत अधिक व बहुत कम सोना, भूख में परिवर्तन, वजन का बढ़ना व कम होना, बैचेनी व चिड़चिड़ाहट महसूस होना, मन में अक्सर आत्महत्या का विचार आना, सामाजिक जीवन से दूर हो जाना, परिवार व मित्रों से दूरी बनाना, शराब व नशीली दवाओं का अत्यधिक सेवन इत्यादि।
उपरोक्त विचार और भावनाएँ इस बात का संकेत है कि व्यक्ति अवसाद से पीड़ित हो सकता है। ये लक्षण मोटे तौर पर संभावना का संकेत देते हैं लेकिन इस मनोरोग की गंभीरता और लक्षण हर व्यक्ति में अलग अलग होते हैं। कई बार एक ही व्यक्ति में इस बीमारी से जुड़े सभी लक्षण दिखाई नहीं देते हैं। अवसादग्रस्त होने के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं जैसे कि कुपोषण, हार्मोन, आनुवंशिकता, मौसम, तनाव, बीमारी, नशा, तथा अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना आदि। आधुनिक मनोविज्ञान में भिन्न-भिन्न कारणों से होने वाले अवसाद के भिन्न-भिन्न प्रकार बताये गए हैं –
मेजर डिप्रेशन : इस स्थिति में व्यक्ति का स्वभाव बदलता रहता है तथा यह व्यक्ति की दैनिक गतिविधियों व व्यक्तिगत सम्बन्धों पर भी प्रभाव डालता है।
बाई पोलर डिसॉर्डर : इसे मैनिक डिप्रेशन भी कहा जाता है, चिड़चिड़ापन व गुस्सा इसका मुख्य लक्षण है।
सायकलोथमिक डिसॉर्डर : इसके लक्षण सूक्ष्म होते हैं, इसमें माइल्ड डिप्रेशन और ह्यपोमानिया देखा जाता है।
डिस्थीमिक डिसऑर्डर : इसमें मरीज़ को दो वर्ष या उससे अधिक समय तक डिप्रेशन अनुभव होता है। वह अपने आप को अस्वस्थ भी महसूस करता है तथा दैनिक कार्यों में भी कठिनाई महसूस करता है।
पोस्टपार्टम डिप्रेशन : यह बच्चे के जन्म के कुछ महीनो बाद माँ को हो सकता है तथा गर्भपात से भी महिला इस स्थिति में जा सकती है।
सीकोटिक डिप्रेशन : इसके मुख्य लक्षण हैं मतिभ्रम, तर्कहीन विचार तथा ऐसी चीज़ें देखना सुनना जो नहीं हैं।
एटिपिकल डिप्रेसन : ये अधिकांशतः युवाओं में पाया जाता है, इससे ग्रस्त रोगियों में कार्बोहाड्रेट क्रेविंग भी पायी जाती है।
सीज़नल अफेक्टिव डिसऑर्डर : यह अवसाद मौसम के अनुसार होता है। मौसम प्रभावित डिप्रेशन हर साल एक ही समय में आता है। सामान्यतः यह सर्दियों में शुरू होता है और गर्मियों की शुरुआत में समाप्त हो जाता है। मौसम प्रभावित डिप्रेशन का एक दुर्लभ रूप समर डिप्रेशन के रूप में भी जाना जाता है, यह गर्मियों की शुरुआत में शुरू होता है और सर्दियों में समाप्त हो जाता है।
अवसाद चाहे किसी भी कारण से हुआ हो अथवा किसी भी प्रकार का हो, इष्टदेव ध्यान पद्धति के द्वारा व्यक्ति को न केवल अवसाद की गंभीर स्थिति से बाहर निकाला जा सकता है बल्कि उसके मस्तिष्क को फिर से पुरानी शक्ति भी लौटाई जा सकती है। यह ध्यान पद्धति मस्तिष्क में कुछ रसायनों के स्तर को बढ़ाकर अवसाद की गंभीरता को कम करने में सहायता करती है व नींद के चक्र को बनाए रखती है तथा साथ ही यह भूख और पाचन क्रिया को भी नियंत्रित करती है। इस ध्यान पद्धति का अनुसरण करने से जीवनशैली में काफी सुधार होता है, जिसके फलस्वरुप तनाव बढ़ाने वाले हार्मोन व मस्तिष्क में सूजन बढ़ाने वाले अणुओं का स्तर कम हो जाता है और ऑक्सीडेटिव तनाव कम हो जाता है। योग दर्शन के अनुसार अवसाद चित्त की मूढ़ अवस्था है; मूढ़ अवस्था का तात्पर्य चित्त की उस अवस्था से है जिसमें तमोगुण का प्राबल्य हो जाता है, इस अवस्था में सतोगुण का प्रकाश अज्ञानमूलक तमोगुण से अभिभूत रहता है। इष्टदेव ध्यान पद्धति का अनुसरण करने से व्यक्ति में तमोगुण का वेग न्यून हो जाता है तथा सतोगुण का प्राबल्य हो जाता है।
~ आचार्यश्री