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तिलक और बिंदी क्यों लगाते हैं?

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प्रश्नकर्ता : तिलक और बिंदी क्यों लगाते हैं?

आचार्यश्री : तिलक या बिंदी लगाना भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न अंग है। कोई भी धार्मिक अनुष्ठान या संस्कार बिना तिलक के पूर्ण नहीं माना जाता, जन्म से लेकर मृत्यु तक इसका प्रयोग किया जाता है। भारतीय परंपरा के अनुसार तिलक लगाना सम्मान का सूचक भी माना जाता है इसलिए भारत में अतिथियों के आगमन पर तिलक लगाकर सम्मान करने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। तिलक या बिंदी को मस्तक पर दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है। तिलक या बिंदी को ललाट पर दोनों भौहों के मध्य इसलिए लगाया जाता है क्योंकि इस स्थान पर आज्ञा चक्र होता है। और माथे पर तिलक अथवा बिंदी लगाने से आज्ञा चक्र सक्रिय रहता है। आज्ञा चक्र मानव शरीर का वह क्षेत्र है जहां से सभी इंद्रियों को कार्य करने की आज्ञा दी जाती है। समस्त इंद्रियों में मन सबका स्वामी कहलाता है। और मन का निवास आज्ञा चक्र में होता है। चूंकि मन सभी इंद्रियों का स्वामी है और इसका निवास आज्ञा चक्र में है, इसलिए सभी इंद्रियों का नियंत्रण आज्ञा चक्र से ही होता है। शरीरशास्त्र की दृष्टि से आज्ञा चक्र का सम्बंध हाइपोथैलेमस और पिट्यूटरी ग्रंथि से होता है। हाइपोथैलमस तथा पिट्यूटरी ग्रंथि नर्वस सिस्टम और इंडोक्राइन सिस्टम के बीच समन्वय का मुख्य केंद्र हैं। पिट्यूटरी ग्रंथि हमारे पूरे शरीर को कंट्रोल करती है। क्योंकि यह ग्रंथि एक नहीं बल्कि पूरे नौ हार्मोन रिलीज करती है, जो कि हमारे शरीर को सुचारू रूप से चलाने के लिए मदद करते हैं। चाहे हमारी लंबाई का बढ़ना हो, चाहे सेक्सुअल विकास हो, चाहे स्तन में दूध की बात हो, चाहे भूख का नियंत्रण हो या फिर शरीर में पानी की मात्रा का संतुलन हो; सब कुछ हमारा यह पिट्यूटरी ग्रंथि ही कंट्रोल करती है, और इस पिट्यूटरी ग्रंथि को भी कंट्रोल करने का काम हाइपोथैलेमस ग्रंथि करती है। और इन दोनों ग्रंथियों को आज्ञा चक्र कंट्रोल करता है। जब हम मस्तक पर चंदन, कुमकुम आदि का तिलक या बिंदी लगाते हैं तो उससे आज्ञा चक्र सक्रिय हो जाता है जिससे पिट्यूटरी और हाइपोथैलेमस ग्रंथि से स्रावित होने वाले हार्मोन्स संतुलित रहते हैं।
तिलक या बिंदी लगाने के शारीरिक व मानसिक लाभ के बारे में प्राचीन भारतीयों को बहुत अच्छे से ज्ञान था इसीलिए प्राचीन काल से अब तक भारतीय नर नारियों द्वारा तिलक व बिंदी लगाने की परंपरा चली आ रही है। भारतीय परंपरा में विभिन्न प्रकार से तिलक लगाये जाते हैं, विभिन्न प्रकार से तिलक लगाने के विषय में कहा गया है कि –
ब्रह्मा को बड़पत्र जो कहिये, विष्णु को दो फाड़।
शक्ति की दो बिंदु कहिये, महादेव की आड़।।
अर्थात ब्रह्मभोज के लिए तीन उंगलियों से तिलक किया जाता है। विष्णु के उपासक दो पतली रेखाओं के रूप में ऊर्ध्व तिलक करते हैं। शक्ति के उपासक दो बिंदी के रूप में तिलक करते हैं। भगवान शिव के उपासक आड़ी तीन रेखाओं के रूप में तिलक करते हैं, जिसे त्रिपुण्ड्र कहा जाता है।

~ आचार्यश्री