Acharyasri Sachchidanand Trust

जनेऊ क्यों पहना जाता है?

Share Post:

Share on facebook
Share on linkedin
Share on twitter
Share on email

प्रश्नकर्ता : जनेऊ क्यों पहना जाता है?

आचार्यश्री : आजकल कुछ लोगों द्वारा जनेऊ पहनना भले ही आउटडेटेड माना जाता हो लेकिन जनेऊ धारण करने के मूल में एक वैज्ञानिक पृष्ठभूमि है। जिसे वर्तमान चिकित्सा विशेषज्ञों ने भी स्वीकार किया है। लंदन के क्वीन एलिजाबेथ चिल्ड्रन हॉस्पिटल के डॉक्टर एस. आर. सक्सेना के अनुसार मल-मूत्र त्याग के समय कान पर जनेऊ लपेटने का एक स्पष्ट वैज्ञानिक आधार है। डॉक्टर सक्सेना द्वारा किये गए शोधों से यह ज्ञात हुआ है कि शौच के समय कान पर जनेऊ चढ़ाने से आंतों की संकुचन और फैलाव की गति बढ़ जाती है। इससे कब्ज दूर होता है और मलत्याग शीघ्र होता है। इसके अलावा मूत्राशय की मांसपेशियों का संकुचन वेग के साथ होता है। इससे मूत्र त्याग ठीक प्रकार से होता है। आयुर्वेद में भी ऐसा उल्लेख मिलता है कि दाहिने कान के पास से होकर गुजरने वाली लोहितिका नामक नाड़ी मल-मूत्र के द्वार तक पहुंचती है, जिस पर दबाव पड़ने से मल-मूत्र त्याग का कार्य आसान हो जाता है। मूत्र सरलता से उतरता है और शौच खुलकर होती है। उल्लेखनीय है कि दाहिने कान की नाड़ी से मूत्राशय का और बाएं कान की नाड़ी से गुदा का संबंध होता है। इसलिए मूत्र त्याग करते समय दाहिने कान को जनेऊ से लपेटने से पोलियुरिया, गोनोरिया तथा डायबिटीज आदि रोगों में लाभ होता है। और मल-त्याग करते समय बाएं कान को जनेऊ से लपेटने से पाइल्स, फिस्टुला तथा रेक्टल प्रोलेप्स आदि रोग होने की आशंका कम होती है। चूंकि मलत्याग के समय मूत्र-विसर्जन भी होता है, इसलिए शौच के लिए जाने से पूर्व नियमानुसार दाएं और बाएं दोनों कानों पर जनेऊ चढ़ाना चाहिए।
इटली के बॉटी यूनिवर्सिटी के न्यूरो सर्जन प्रोफेसर एनारीब पिटाजेली ने अपने अनुसंधानों से ज्ञात किया है कि कान के मूल के चारों ओर दबाव डालने से हृदय को मजबूती मिलती है। इस प्रकार जनेऊ हृदय रोगों से बचाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा किये गए कुछ शोधों से यह भी ज्ञात हुआ है कि जनेऊ पहनने वालों को हृदय रोग और ब्लडप्रेशर की आशंका अन्य लोगों के मुकाबले कम होती है। जनेऊ शरीर में रक्त के प्रवाह को भी नियंत्रित करने में सहायक होता है। ‍चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार जनेऊ के हृदय के पास से गुजरने से यह हृदय रोग की संभावना को कम करता है, क्योंकि इससे रक्त संचार सुचारू रूप से संचालित होने लगता है। जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को लकवा मारने की संभावना भी कम हो जाती है क्योंकि जनेऊ धारण करने वाले को शौच करते समय मुंह बंद रखने तथा दांत पर दांत बैठा कर शौच करने के नियम का पालन करना होता है। चिकित्सा विशेषज्ञों के अनुसार दांत पर दांत बैठाकर शौच करने से व्यक्ति को लकवा नहीं मारता। इसके अतिरिक्त जनेऊ धारण करने के और भी कई लाभ होते हैं जैसे कि जनेऊ धारण करने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है, जनेऊ धारण करने से विद्युत प्रवाह रेखा नियंत्रित रहती है जिससे काम-क्रोध पर नियंत्रण रखने में आसानी होती है, जनेऊ धारण करने से मन सात्विक होता है, यह सात्विकता मनुष्य को बुरे कर्मों से बचाती है। तथा जनेऊ धारण करने वाले व्यक्ति को सात्विक निद्रा आती है अर्थात नींद में बुरे स्वप्न नहीं आते।

प्राचीन भारतीय विद्वान जनेऊ धारण करने के इन सभी लाभों से भलीभांति परिचित थे इसीलिए भारतीय विद्वानों द्वारा जनेऊ धारण करने की परम्परा को सोलह संस्कारों में शामिल किया गया है। वैदिक शास्त्रों में मनुष्यों के लिए सोलह संस्कारों का विधान किया गया है जिनमें से एक है उपनयन संस्कार। उपनयन का शाब्दिक अर्थ होता है ‘निकट ले जाना’ और उपनयन संस्कार का अर्थ होता है ज्ञान के निकट ले जाना। जब बालक ज्ञान अर्जन के योग्य हो जाता है तब उसका उपनयन संस्कार किया जाता है। इस संस्कार में बालक के बाएं कंधे पर एक 96 अंगुल लंबा सूत का धागा पहनाया जाता है इस विशिष्ट धागे को विशेष विधि से ग्रन्थित करके बनाया जाता है। इसमें 9 तार 5 गांठें और तीन सूत्र होते हैं। इस विशिष्ट धागे को ही जनेऊ कहते हैं। जनेऊ के और भी कई अन्य नाम हैं जैसे कि यज्ञोपवीत, उपवीत, यज्ञसूत्र, व्रतबन्ध, बलबन्ध, मोनीबन्ध और ब्रह्मसूत्र। जनेऊ की लंबाई 96 अंगुल होने का अभिप्राय यह है कि जनेऊ धारण करने वाले को 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का प्रयास करना चाहिए। चार वेद, चार उपवेद, छह अंग, छह दर्शन, तीन सूत्रग्रंथ, नौ अरण्यक मिलाकर कुल 32 विद्याएं होती है। 64 कलाओं के अंतर्गत वास्तु निर्माण, व्यंजन कला, चित्रकारी, साहित्य कला, दस्तकारी, भाषा, यंत्र निर्माण, सिलाई, कढ़ाई, बुनाई, दस्तकारी, आभूषण निर्माण और कृषि ज्ञान आदि आते हैं। जनेऊ में मुख्‍यरूप से तीन सूत्र होते हैं। यह तीन सूत्र त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश के प्रतीक होते हैं। यह तीन सूत्र देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण के प्रतीक होते हैं। यह तीन सूत्र सत्व, रज और तम का प्रतीक होते हैं। यह तीन सूत्र गायत्री मंत्र के तीन चरणों का प्रतीक होते हैं। और यह तीन सूत्र ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और वानप्रस्थ इन तीन आश्रमों का भी प्रतीक होते हैं। संन्यास आश्रम में यज्ञोपवीत को उतार दिया जाता है। जनेऊ के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं। इस तरह कुल तारों की संख्‍या नौ होती है जो कि नौ सद्गुणों का प्रतीक होते हैं। जनेऊ धारण करने वाले को जिन नौ सद्गुणों को धारण करना चाहिए वे इस प्रकार हैं – सरलता, तपस्वी, परिश्रमी, संतोषी, क्षमाशील, जितेंद्रिय, दानी, वीर और दयालु। जनेऊ में पांच गांठ लगाई जाती हैं जो कि पञ्च महायज्ञों का प्रतीक होती हैं। अर्थात जनेऊ धारण करने वाले को ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, बलिवैश्वदेव यज्ञ, पितृ यज्ञ तथा अतिथि यज्ञ का अनुष्ठान अवश्य करना चाहिए।